Sunday, April 20, 2008

आयोग या दुर्योग ?

2002 के गुजरात नरसंहार पीड़ितों को इंसाफ दिलाने की राज्य सरकार की कोशिशों के बारे में यही कहा जा सकता है कि ये न्याय को तार-तार करने जैसी हैं. इसका ताजातरीन उदाहरण है मोदी सरकार द्वारा दंगों की जांच कर रहे नानावती-शाह आयोग में हाईकोर्ट के एक सेवानिवृत्त जज अक्षय मेहता की नियुक्ति. मेहता को आयोग में जस्टिस के जी शाह की जगह लाया गया है जिनकी कुछ समय पहले मृत्यु हो गई थी. नरोदा पाटिया हत्याकांड के मुख्य आरोपियों में से एक और बजरंग दल नेता बाबू बजरंगी को जमानत देने वाले जस्टिस मेहता को आयोग में लाए जाने की सभ्य समाज में तीखी आलोचना हुई है.

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