Tuesday, July 29, 2008

शिवराज का जूता और सुषमा की बोली

शिवराज का जूता और सुषमा की बोली
रवीश कुमार
नई दिल्ली, मंगलवार, जुलाई 29, 2008

एनडीटीवी इंडिया पर देश के गृहमंत्री शिवराज पाटिल की एक तस्वीर दिखाई गई। पाटिल अहमदाबाद के सिविल अस्पताल के बाहर अपने सफेद जूते को कहां रखें इस उधेड़बुन में नज़र आते हैं। शिवराज पाटिल की सफेद पतलून और सफेद जूते जितेंद्र मार्का स्टाइल की नकल लगते हैं। लगता है पाटिल जितेंद्र के ज़माने से आगे नहीं बढ़ पाए हैं।आध्यात्मिक दक्षता हासिल कर चुके गृह मंत्री मीडिया की नज़र में कभी योग्य नहीं माने गए। ना ही उन्होंने इस नज़र को बदलने की कोशिश की। वह आराम से जगह बनाते हुए अपने जूते संभालते कदमों को बचाते रख रहे थे। उनसे पहले सोनिया गांधी कीचड़ की परवाह किए बगैर आगे निकल जाती हैं। शिवराज पाटिल को पीछे रहना पसंद है इसलिए सोच-समझ कर कदम बढ़ाते हैं।दूसरी तरफ गृह राज्य मंत्री भी हैं। जायसवाल साहब हर संकट पर बयान देते हैं इसलिए संकट के समाधान पर मथुरा में हो रहे किसी पूजा पाठ में वेदी पर बैठ गए। गृह मंत्रालय पहले राम भरोसे था अब भगवान भरोसे है। जायसवाल तमाम तरह के आसन्न संकटों के समाधान के लिए पूजा कर रहे हैं। अगर यही समाधान है तो उन्हें रोज़ किसी न किसी पूजा में शामिल होना चाहिए। वह पूजा ही करें। गृह मंत्रायल में बाकायदा साईं बाबा से लेकर देवराहा बाबा तक की प्रतिमा लगनी चाहिए। तमाम तरह के अर्द्धसैनिक बलों का अपना अलग-अलग इष्ट देव घोषित होना चाहिए। ताकि इन देवों के सहारे उनका प्रदर्शन अच्छा हो और देश को संकटों से मुक्ति मिले।दूसरी तरफ, गुजरात में एक मंत्री हैं जयनारायण व्यास। इनका कहना है कि आतंकवादी हर वक्त एक कदम आगे सोचता है। वे कभी भी कुछ भी कर सकते हैं। भाई साहब! सरकार एक कदम पीछे क्यों रह जाती है। इसका जवाब है आपके पास। व्यास और मोदी तो कह रहे थे कि गुजरात में किसी की हिम्मत है तो धमाका कर ले। सिर्फ कहते ही रहे, लगता है आतंकवादियों को रोकने की तैयारी भूल गए। गुजरात के अख़बारों में ख़बर छप रही है कि मोदी सरकार ने खुफिया विभाग को नष्ट कर दिया। खुफिया तंत्र में मुस्लिम अफसरों की कमी है। उनका भरोसा अपने ही तंत्र पर नहीं है लेकिन मोदी की मांग में कमी नहीं आई। पोटा कानून लगाने की बात कर रहे हैं। एक आतंकवादी पकड़ा नहीं गया, कानून लेकर क्या करेंगे। इस देश में तमाम तरह के अपराधों की सख्त से सख्त सज़ा है। पोटा की कमी क्यों महसूस की जा रही है। एक पकड़ा भी था अज़हर मसूद को। उसे तो जसवंत जी छोड़ आए, बिना आडवाणी जी को बताए!इसका मतलब है कि आतंकवाद कानून से नहीं निगाह रखने से रुकेगा। जांच एजेंसी को बेहतर करने से होगा लेकिन हम इस पर 10 साल से बहस ही कर रहे हैं। न यूपीए ने, न एनडीए ने किसी ने कुछ नहीं किया। एनडीए के समय में बड़ी से बड़ी आतंकवादी घटनाएं हुईं, तब क्यों नहीं कि एक केंद्रीय एजेंसी बनाने की मांग हुई। अब क्यों हो रही है इसलिए क्योंकि राजनीति हो रही है। सुषमा स्वराज कहती हैं संसद में नोट के बदले विश्वासमत हासिल करने के मुद्दे से ध्यान से हटाने के लिए यह धमाका हुआ है। इसका क्या प्रमाण है उनके पास। क्या वह यह कह रही हैं कि यूपीए न करवा दिया तो गुजरात की पुलिस किसी यूपीए वाले को क्यों नहीं पकड़ती। तब तो घटना का राज़ खुलना आसान हो जाना चाहिए। ज़ाहिर है या तो सुषमा को अपने बोले जाने वाले बयानों को सुनना ज़्यादा अच्छा लगता है या फिर उन्हें नहीं पता कि क्या बोल रही हैं।दरअसल हमारे राजनेता हैं ही इसी के लायक। वो बोल देते हैं। एक से एक बड़ी बात और एक से एक छोटी बात। उन्हें फर्क नहीं पड़ता। वो जानते हैं कि इन सब मुद्दों से वोट नहीं मिलता। बस किसी पर लापरवाही का आरोप लगा कर खुद को ज़िम्मेदार बना दो। सुषमा स्वराज का यह बयान ऐसे समय में हुआ है जब भाजपा लोकसभा चुनावों में आतंकवाद को मुद्दा बनाने की सोच रही है। बीजेपी को पता होना चाहिए कि पोटा कानून संसद ने बनाया और संसद ने ही खत्म कर दिया। जब खत्म हुआ तो देश में कोई बाढ़ नहीं आ गई थी। उसके बाद कई चुनाव हुए लेकिन वहां कांग्रेस हारी भी तो पोटा हटाने की वजह से नहीं। ज़ाहिर है नेताओं को कुछ नहीं पता कि वे क्या कह रहे हैं क्योंकि उन्हें यही नहीं पता कि वे क्या कर रहे हैं। वरना अहमदाबाद में हुआ धमाका कोई पहला धमाका नहीं था। इससे पहले बंगलुरु, जयपुर, अजमेर, फ़ैज़ाबाद, बनारस, हैदराबाद, दिल्ली आदि तमाम जगहों पर भी धमाके हो चुके हैं। क्या ये सभी धमाके बकौल सुषमा किसी न किसी मुद्दे से ध्यान हटाने के लिए किये गए। आखिर सुषमा के इस बयान और शिवराज पाटिल के जूते में क्या फर्क है।


एनडीटीवी इंडिया

No comments: