तुम्हे कैसे याद करुँ भगत सिंह
-अशोक कुमार पाण्डेय जिन खेतों में तुमने बोई थी बंदूकेंउनमे उगी हैं नीली पड़ चुकी लाशें जिन कारखानों में उगता थातुम्हारी उम्मीद का लाल सूरजवहां दिन को रोशनी रात के अंधेरों से मिलती है ज़िन्दगी से ऐसी थी तुम्हारी मोहब्बतकि कांपी तक नही जबानसू ऐ दार पर इंक़लाब जिंदाबाद कहतेअभी एक सदी भी नही गुज़री औरज़िन्दगी हो गयी है इतनी बेमानीकि पूरी एक पीढी जी रही है ज़हर के सहारे तुमने देखना चाहा था जिन हाथों
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